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मुसाफिर हैं हम... मुसाफिर हैं हम चले जा रहे हैं,

मुसाफिर हैं हम...
मुसाफिर हैं हम चले जा  रहे हैं, ना मंजिल पता है ना रास्ते पता हैं |
ना कोई जिकर है ना कोई फिकर है, कहाँ है ठिकाना न कोई खता है |
राही हैं हम चले जा रहे है ……………
एक ओ भी समय था न कोई फिकर थी, थे मस्ती में रहते न कोई जिकर थी |
बस पढना खेलना और जी भर के जीना, बचपन से है सीखा गमों को ही सीना |
देखते थे सपने ये दुनियां रगीं है, पर अब जाके समझ आया ये कितनी संगी है |
भटकन ही भटकन ना कोई समझ है,  कहाँ है मंजिल न कोई खबर है |
मुसाफिर हैं हम चले ……………
हुए जब किशोर हुआ बड़ी शोर, देखी जब दुनियां थे बड़ए चोर |
नयी थी दुनियां नये थे लोग, अंजानी दुनियां अन्बूझे लोग |
बस शब्दो का मेल और शब्दो की वानी,  यहाँ आके सुनी इक अजब सी कहानी |
आज वह इन्सानियत खो बैठा इंसान न रहा, ऐसे ओ भटका कि कोई पहचान न रहा |
बस गमों के हैं बादल न कोई सबर है, कहाँ है ठिकाना न कोई खबर है |
मुसाफिर हैं हम …………

-दुर्गेश बहादुर प्रजापति मुसाफिर हैं हम...
मुसाफिर हैं हम...
मुसाफिर हैं हम चले जा  रहे हैं, ना मंजिल पता है ना रास्ते पता हैं |
ना कोई जिकर है ना कोई फिकर है, कहाँ है ठिकाना न कोई खता है |
राही हैं हम चले जा रहे है ……………
एक ओ भी समय था न कोई फिकर थी, थे मस्ती में रहते न कोई जिकर थी |
बस पढना खेलना और जी भर के जीना, बचपन से है सीखा गमों को ही सीना |
देखते थे सपने ये दुनियां रगीं है, पर अब जाके समझ आया ये कितनी संगी है |
भटकन ही भटकन ना कोई समझ है,  कहाँ है मंजिल न कोई खबर है |
मुसाफिर हैं हम चले ……………
हुए जब किशोर हुआ बड़ी शोर, देखी जब दुनियां थे बड़ए चोर |
नयी थी दुनियां नये थे लोग, अंजानी दुनियां अन्बूझे लोग |
बस शब्दो का मेल और शब्दो की वानी,  यहाँ आके सुनी इक अजब सी कहानी |
आज वह इन्सानियत खो बैठा इंसान न रहा, ऐसे ओ भटका कि कोई पहचान न रहा |
बस गमों के हैं बादल न कोई सबर है, कहाँ है ठिकाना न कोई खबर है |
मुसाफिर हैं हम …………

-दुर्गेश बहादुर प्रजापति मुसाफिर हैं हम...