आंधियों ने कुछ कहा ही नही मन की वेदना ने ललकारा हैं, अब ये वक्त हमारा हैं, उठ खड़े हो क्यो आलस्य को अपनाते हो,बदलो रूढ़िग्रस्त सोच को मन को न हराना हैं, नवोद्भिद, नवसृजन इन से ही जग का कल्याण हैं,तभी भविष्य होगा सुनहरा है, जग मनस्वी चेतना को बन हठयोगी, लिखना अब स्वर्णिम अक्षरों का तराना हैं, बुझ जाए जो दीपक हवा के झोंके से हम वो चिराग नही ये अब तुम्हें बताना हैं, जग में हमारी भी हस्ती बसती हैं, ये जागरूक मिशाल बन मशाल जलाना हैं। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏 💫Collab with रचना का सार..📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को रचना का सार..📖 के प्रतियोगिता:-124 में स्वागत करता है..🙏🙏 *आप सभी 4-6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।