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मैं अकेला ही चला था दही ज़िंदगी का जमाने मगर, बूं

मैं अकेला ही चला था दही ज़िंदगी का जमाने मगर, 
बूंदी सरीखे दोस्त मिलते रहे, रायता सा बनता गया...


(Anonymous)

©Shubhro K
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#08Aug2022