गीली मिट्टी सा मन उसका जिसने चाहा वही मोड़ दिया,,, गीली मिट्टी सा मन उसका जिसने चाहा वही मोड़ दिया माँ बाप के घर की सुकुमारी दायरो में समेट दिया,,,,,,, देखो बंधन के लिए कितना कितना आडंबर रचा है समाज ने पैरों में आलता हाथों में कंगन सर में पल्लू,,, आजादी को छोड़ बंधनों में बंधने ससुराल चली एक विवाहिता,,,,