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78 उठ जाएँ आर्यपुत्र ! मेरे हीं था कोई पूर्वजन्म क

78
उठ जाएँ आर्यपुत्र ! मेरे हीं था कोई पूर्वजन्म का पाप, 
सुख में बाधक बना जो तब परिणत होकर अभिशाप, 
अन्यथा कोमल ह्रदय आप, तब कैसे करते वैसा दुरालाप, 
और अब कैसे होता प्रानप्रिये ह्रदय में मेरे लिए मंगल छाप ? 
कैसे मुझ दुखिया की सुधि आपको आई, अब कहें नाथ ? 
विरहव्यथा का शूल ह्रदय से पहले निकलने दो मूल के साथ। 
जिनकी उपेक्षा से जमी मन में जो दुख की साल, पूरि बह जाने दो, 
पलकों में अटकी इन आँसुओं को पोंछकर कुछ पश्चाताप मिटा लेने दो। #Shakuntla_Dushyant
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उठ जाएँ आर्यपुत्र ! मेरे हीं था कोई पूर्वजन्म का पाप, 
सुख में बाधक बना जो तब परिणत होकर अभिशाप, 
अन्यथा कोमल ह्रदय आप, तब कैसे करते वैसा दुरालाप, 
और अब कैसे होता प्रानप्रिये ह्रदय में मेरे लिए मंगल छाप ? 
कैसे मुझ दुखिया की सुधि आपको आई, अब कहें नाथ ? 
विरहव्यथा का शूल ह्रदय से पहले निकलने दो मूल के साथ। 
जिनकी उपेक्षा से जमी मन में जो दुख की साल, पूरि बह जाने दो, 
पलकों में अटकी इन आँसुओं को पोंछकर कुछ पश्चाताप मिटा लेने दो। #Shakuntla_Dushyant