Nojoto: Largest Storytelling Platform

बचपन न थीं कोई डर, न थीं फिक्र जाने की घर, रहत

बचपन 

न थीं कोई डर,  न थीं फिक्र जाने की घर, 
रहते थे नज़र माँ बाप के हम पर 
चाहे ये सूकून बच्चें हर। 

होती थी चिंतित माँ पूरे दिन 
रहती थी समय ये गिन, 
करती थी इंतजार हमारा होके क्रांतिहीन, 
आते ही कहती थी पढ़लो बच्चे किताब में होके लीन। 

आज की युवा पीढ़ी पर है असर कुछ ऐसे 
विलुप्त  हो रहीं है सारी खुशियां न जाने कैसे? 
जब से आविष्कार हुए हैं कम्प्यूटर, मोबाइल, टी.वी. औज़ार जैसे
प्रेम हो गया है इनसे मानो जीवित मनुष्य हो वैसे। 

सोच रहे हो,  होगा बचपन गुम इनका कब? 
चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते तब
हो गये हैं संसार इनके सीमित अब
बचा लो इन्हें मिलकर सब के सब। #Childhood#Is#The#Heavenly#Period#Of#One's#Life❣️❣️
बचपन 

न थीं कोई डर,  न थीं फिक्र जाने की घर, 
रहते थे नज़र माँ बाप के हम पर 
चाहे ये सूकून बच्चें हर। 

होती थी चिंतित माँ पूरे दिन 
रहती थी समय ये गिन, 
करती थी इंतजार हमारा होके क्रांतिहीन, 
आते ही कहती थी पढ़लो बच्चे किताब में होके लीन। 

आज की युवा पीढ़ी पर है असर कुछ ऐसे 
विलुप्त  हो रहीं है सारी खुशियां न जाने कैसे? 
जब से आविष्कार हुए हैं कम्प्यूटर, मोबाइल, टी.वी. औज़ार जैसे
प्रेम हो गया है इनसे मानो जीवित मनुष्य हो वैसे। 

सोच रहे हो,  होगा बचपन गुम इनका कब? 
चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते तब
हो गये हैं संसार इनके सीमित अब
बचा लो इन्हें मिलकर सब के सब। #Childhood#Is#The#Heavenly#Period#Of#One's#Life❣️❣️