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जानिए? हर धर्म का इन्सान स्वयं का शत्रु कैसे बन

जानिए? 
  हर धर्म का इन्सान स्वयं का शत्रु कैसे बन रहा हैं?(A)
 1.अपने शरीर की क्रियाऔ का हमेशा एक जैसा कार्य का
 समझने के कारण भी एक उदाहरण है शत्रु बनने का।
   2.आलस्य और निद्रा के अति पल पर नियंत्रण नहीं कर पाना।
   3.अपनी शक्ति के बारे में और संस्कारो का निरंतर लुप्त होना।
   4.अपने माता -पिता के अमृत ज्ञान को तुच्छ ज्ञान     
       समझना और माता- पिता को अपने स्वाध्याय
       ज्ञान से रू ब रू नहीं कराना भी एक बड़ा उदाहरण है।
  5. संसारिक मोह-माया, अधर्म,तुच्छ संगत से संग्रह ज्ञान    
      पर शीघ्र ही विश्वास करना अपना विध्वंस करने का ।
 यह भी एक गुप्त उदाहरण हैं।
   6.धैर्य न होने और परिश्रम नहीं करने के साथ -साथ अज्ञान
     रुपी अंधकार को न त्यागनाअर्थात स्वयं को भी नहीं      
     जानने का एक कटु उदाहरण है । अपने शत्रु होने का।
     7. खुद को परम का अंश नहीं मानना इस संसार में 
और अज्ञान रुपी स्वार्थ से जानने पर सो अहम् 
खुद के द्वारा होना समझना प्रत्येक कार्यो में।
     8. भगवान को स्वयं के हृदय में होते हुएं भी उसको संसार में 
निरंतर दुढनां का कारण शत्रु बन रहा हैं इंसान के लिए।
     9. स्वयं को ही करना पड़ेगा उद्धार अपना हर धर्म के     
    इन्सान को पाखण्ड और अधर्म पर चलने से खुद का वह 
अपने पुर्वजोंं का मान-सम्मान को भ्रष्ट करने का कारण बनेगा।
    10.ह्रदय से आयें प्रत्येक एक -एक संदेश को समझना 
सीखिएं, हर इन्सान को उसको इग्नोर करना और
 उसे लेखनी प्रकाश से अपना ह्रदय प्रकाश से 
छुपाकर रखना शत्रु का महान उदाहरण है इस पृथ्वी पर।
      शेष जानकारी अगली पोस्ट(B) में मिलेगी .

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