मैं शहीद हुआ पर मरा नही ये ज़िन्दगी थी माँ तेरा बेटा खुदा नहीं कोशिश करके न बदला कुछ भी मौत से मेरी कुछ लाल हुई बस चुनरी तेरी धर्म के नाम पर कर रहे बमबारी भूलकर किनारा कर गए ये दुनियादारी बहा रहे मासूमो का लहू अब तो खुदा का है सहारा,बता दे मैं जियूँ या मरु तिनके-तिनके से मेरा आशियाना बनता है उस आशियाने में कई मंजिल बसता है एक बारूद का गोला सब मुश्किल कर देता है सोचकर देखो,डर लगता है क्या कसूर था उन मासूमो का जिसने हिरोशिमा और नागासाकी में जान दी आज भी भुगत रहे वो लोग जिन्होंने पैदा होकर साँस तक नही ली पूरा शहर चुटकी में भाप हो गया पलक झपकते ही पूरा शहर साफ हो गया रह गए उस बम के छोटे-छोटे टुकड़े जो आज भी कह रहे है,ना आना इधर,इसमें है खतरनाक किरणे।। खून पसीने से सीचूँगा ये मिट्टी जब जाकर मेरे हलक भी दो निवाले होंगे तपती धूप में जलना होगा बेपरवाह मैं जलूँगा तब जाकर मेरे घर मे उजाले होंगे।। Day 3 टीम नंबर .17 _ " साहित्य संजीवनी " सर्वसम्मति से चुने गए शब्द और शीर्षक__ शब्द _ ज़िंदगी, मुश्किल , कोशिश , किनारा , मंज़िल आज का शीर्षक है_ " देखो उम्मीद मत खोना "