हा देखी है मैंने भी चाहत अपने लिए उसकी आंखो में, ना जाने क्यों वो छुपाती अपने जज्बात है मुझसे ऐसे। कहती क्यों नहीं मुझसे कि क्या है रिश्ता मेरा उससे, यकीं है कि कुछ तो रखा है उसने मेरे साथ रिश्ता कुछ ऐसे। महोब्बत के चक्कर में उलझे हुऐ से कुछ रिश्ते मेरे, कि ऱब भी मुझे दूर नहीं कर सकता साथ होने से तेरे। ना होना था वहीं ना जाने क्यों हो रहा है आज़ साथ मेरे, रात-दिन बस ख़्याल आते है मुझको बस सिर्फ़ एक तेरे। भूलाकर भी ना भूला सकता हूं हमदम मैं तुम्हें ओ मेरे, याद में भी बसे हो कुछ तुम कुछ ऐसे कि याद ही तेरे। नवाज़ा है ख़ुदाने हमारे रिश्तें को कि बन जाओ तुम मेरे,