ये जीवन,. शतरंज की बिसात सा वक़्त मुकर्रर जीवन से जीवांत सा कश्मक़श हर कदम कोई सौगात सा ये खेल आरम्भ से अंत तक शह और मात का..! कभी खुशी कभी ग़म के वार का फिर किसकी जीत किसकी हार का कर्मभूमि पर विख्यात सा ये समर,अदृश्य अज्ञात सा..! ये खेल आरम्भ से अंत तक शह और मात का..! दांव पेंच के निशानों पर कुछ अपने कुछ बेगानों पर चुभते तीर तलवार के आघात सा चालों पे चाल,घातों पे प्रतिघात सा..! ये खेल आरम्भ से अंत तक शह और मात का..! वक़्त से इंसानी तक़रार का कोई द्वन्द नाहक रार का परिणाम,इंसा परास्त सा वही अँधेरी रात सा ये खेल आरम्भ से अंत तक शह और मात का..! ©अज्ञात #वक़्त