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अब तो शायद तुम मुझे ढूंढो तब भी न मिल पाऊंगा एहसास

अब तो शायद तुम मुझे ढूंढो तब भी न मिल पाऊंगा
एहसास ये मेरे अल्फ़ाज़ों से जब टकराएंगे ,
एक हुज़ूम बाकी है एक अरदास साखी है ,
तेरे मेरे दरमियाँ कुछ तो अब भी बाकी है ! DQ : 428

बस यूँ हीं !
अब तो शायद तुम मुझे ढूंढो तब भी न मिल पाऊंगा
एहसास ये मेरे अल्फ़ाज़ों से जब टकराएंगे ,
एक हुज़ूम बाकी है एक अरदास साखी है ,
तेरे मेरे दरमियाँ कुछ तो अब भी बाकी है ! DQ : 428

बस यूँ हीं !