मां भारती कि पीड़ा लिखने कि छोटी सी कोशिश 😌😌🙏 बहुत जख्म है पहले से ही अब और घाव नहीं चाहिए मुझे जात-पात के नाम पर अब अलगाव नहीं चाहिए सब भागतें दिख रहे हैं शहर की तरफ एक-एक कर पर मुझे विकास के नाम पर खाली गांव नही चाहिए हर किसी को लत लगी है यहां पे बस पैसे की मगर इसकी लत में मुझे और भटके हुए पांव नहीं चाहिए फंदे से झूलते किसान रहे, तमाशबीन बन इन्सान रहे मुझे मेरे देश में ऐसे बिल्कुल भी बदलाव नहीं चाहिए के करनी हो मेरी सेवा तो कोई अटल-कलाम सा करे मुझे ये ऐसे दिखावटी और खोखले ताव नहीं चाहिए नहीं चाहिए