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प्रेमपथ के यात्री को क्रोध विक्षिप्त कर डालता है क

प्रेमपथ के यात्री को
क्रोध विक्षिप्त कर डालता है
क्योंकि प्रेम
अहंकार शून्य स्थिति में संभव है।
क्रोध अहंकार का पर्याय है।
प्रेम हृदय मे रहता है,अहंकार बुद्धि में।
स्वभाव से दोनों ही विरोधाभासी हैं।
प्रेम में व्यक्ति स्वयं को कभी नहीं देखता।
प्रेमी के आगे स्वयं लीन हो जाता है।
जैसे मन्दिर में ईश्वर के आगे समर्पित होकर
चित्त में उसको स्थिर कर लेता है।
यही तो प्रेम की परिभाषा है।
वहां कभी दो नहीं रहते।  #गुलाब कोठारी# #पंछी#पाठक#प्रेम
प्रेमपथ के यात्री को
क्रोध विक्षिप्त कर डालता है
क्योंकि प्रेम
अहंकार शून्य स्थिति में संभव है।
क्रोध अहंकार का पर्याय है।
प्रेम हृदय मे रहता है,अहंकार बुद्धि में।
स्वभाव से दोनों ही विरोधाभासी हैं।
प्रेम में व्यक्ति स्वयं को कभी नहीं देखता।
प्रेमी के आगे स्वयं लीन हो जाता है।
जैसे मन्दिर में ईश्वर के आगे समर्पित होकर
चित्त में उसको स्थिर कर लेता है।
यही तो प्रेम की परिभाषा है।
वहां कभी दो नहीं रहते।  #गुलाब कोठारी# #पंछी#पाठक#प्रेम