रुलाती हैं अक्सर मुझे वही पुराने दिनों की यादें। जब तेरी मुझमे और मेरी तुझमे बसती थीं साँसे। लगती थी सारी क़ायनात ज़न्नत की प्यारी ज़मी जबतक हमारे रिश्ते में नआई कोई खोट न कमी। मेरी बाहों में तेरी बाहें तेरी बाहों में मेंरा सर रहता ग़म की अंधेरी रात के बदले खुला आसमाँ रहता। उलझे हुए रहते तेरी जुल्फों केबीच मेरे दोनो हाथ जवां इश्क़ की करते थे हम जब हर इक बात। मेरे दुःख का तुझे तेरे ग़म का मुझे अंदाज़ा होता मुझे उदास मायूस देखकर तू भी उदास हो जाता। फिर ऐसा क्या हुआ उस दिन मेरे बिछड़े हमसफ़र कि मुझे बेमौत मार देने मेंतूने न छोड़ी कोई कसर। ©V.k.Viraz विवेक Kumar uday kumar Devesh Dixit vks Siyag