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अरे ये धारदार क्या वो भी दो-दो धक्क से रह गया कलेज

अरे
ये धारदार क्या
वो भी दो-दो
धक्क से रह गया कलेजा

तभी
मजा आया
कहते हुये वो इतनी जोर से हँसा
उस अंधेरी काली रात से उसकी प्रीत हो जैसे

तुम्हें डर नहीं लगता
कैसा डर
इन सड़कों के नीचे जमी धुल ही तो
कल तक आशियाना हुआ करता था मेरा

रोमरोम भींगा
पेशानी तक फैला
ये अहसास
हाँ ये मखमली सड़क
जो कभी घर था मेरा

©दामिनी नारायण सिंह
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