छुपदे फिरदे सभना तो छुपदे फिरदे आज फिर, मैं इक बन्द कमरे विच जा पहुँचेया, जिथे घुप अंधेरा सी, डरदे दराउंडे गया मैं अंदर, चारों पासे अखां फेरियां, कुछ वी समझ नही आया सी, सिर्फ अंधेरा अते अंधेरा सी, धीरे-धीरे अगे वध्या, इक दीवार नाल जा टकराया सी, लड़खडा के सम्भलदे होए फिर अगे वध्या सी, अंधेरे विच राह नही सी विखदी, पर हिम्मत नही मैं हारा सी, दिगड़े-रुलदे मैं एक कमरे तो दूजे विच जा पहुँचया सी, उस कमरे विच एक किरण रोशनी दी किद्रो औंदी सी, अगे जा वेख्या मैं किवाड़ विच सुराख सी, इक किरण ने कमरें नु जग चानन कित्ता सी, मेरी राह नु रोशन कित्ता सी, मैंनु बाहर निकलन दा राह विखाया सी, छुपदे फिरदे आज मैंनु इक सिख नवी इह है, ज़िंदगी विच जदों अंधेरा आवे हार कदी नही मनन्नी है, अंधेरा विच ही राह रोशनी दी छिप्पी है, आज फिर छुपदे फिरदे मैं एक नवी गल सीखी है।। छुपदे फिरदे सभना तो छुपदे फिरदे आज फिर, मैं इक बन्द कमरे विच जा पहुँचेया, जिथे घुप अंधेरा सी, डरदे दराउंडे गया मैं अंदर, चारों पासे अखां फेरियां, कुछ वी समझ नही आया सी,