ये जो तेरे बगैर दर्दो का मेला है इसे मैंने और इस कागज़ के टुकड़े ने ही झेला है दुनिया तो सिर्फ समझाती-बहकाती रहती है लोग तसल्ली देते है कि यही ज़िन्दगी का खेला है ! दर्दो का मेला!