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मानुष:- अरी ओ मेरी प्यारी बुलबुल,            पहले

मानुष:- अरी ओ मेरी प्यारी बुलबुल, 
           पहले तु थी कितनी चुलबुल!!
           हुआ है क्या, जो अब यूं,
           चुप और उदासीन-सी दिखती है?
           क्या लग गई लत तुझे ऐशो-आराम की,
           क्या तु भी आलसपन सीखती है??

           जो रोज चांदी की कटोरी में,
           तुझे दाना-पानी दिए जाता हूँ।
           मेरी ख्वाहिश को ना यूं ठुकरा,
           जल्दी से एक मधुर-राग सुना।।

पक्षी:- हम है आदी आजादी के,
         यह प्रेम हमें ना जंचता है।
         छीन जो लोगे यह भी हमसे,
         तो फिर हममें शुन्य सिवा क्या बचता हैंं।।

        है विद्रोह भरा जो सीने में,
        तो प्रेम के नग्मे गाऊ कैसे? 
        जो कुहूकता है मन मेरा इस पिंजर मे,
        तो कहो भला मै चहचहाऊ कैसे??

       पर है, पर परतंत्र हूँ,
       महज नाम का परिंदा हूँ ।
       है बची नहीं जीवन की विशेषता एक,
       हैं व्यंग्य यह कि "मैं जिन्दा हूँ "।।

कवि:- बोल कैसा तु दरिन्दा है,
          क्या दिखता नही, वह परिंदा है?
          छीनी कैसे तुने जिंदगी उसकी,
          क्या दिखता नही तुझे, वह जिंदा हैंं??

         अरे ओ क्रूर मानुष, कर दे आजाद उन्हे,
         वो खुद ही मधुरता अपनी झलकाऐगे।
         तोड दे पिंजर-वन ये अपना,
         वरना वे, पिंजर ले उड जाऐंगे।। #imagism 
#rawind
मानुष:- अरी ओ मेरी प्यारी बुलबुल, 
           पहले तु थी कितनी चुलबुल!!
           हुआ है क्या, जो अब यूं,
           चुप और उदासीन-सी दिखती है?
           क्या लग गई लत तुझे ऐशो-आराम की,
           क्या तु भी आलसपन सीखती है??

           जो रोज चांदी की कटोरी में,
           तुझे दाना-पानी दिए जाता हूँ।
           मेरी ख्वाहिश को ना यूं ठुकरा,
           जल्दी से एक मधुर-राग सुना।।

पक्षी:- हम है आदी आजादी के,
         यह प्रेम हमें ना जंचता है।
         छीन जो लोगे यह भी हमसे,
         तो फिर हममें शुन्य सिवा क्या बचता हैंं।।

        है विद्रोह भरा जो सीने में,
        तो प्रेम के नग्मे गाऊ कैसे? 
        जो कुहूकता है मन मेरा इस पिंजर मे,
        तो कहो भला मै चहचहाऊ कैसे??

       पर है, पर परतंत्र हूँ,
       महज नाम का परिंदा हूँ ।
       है बची नहीं जीवन की विशेषता एक,
       हैं व्यंग्य यह कि "मैं जिन्दा हूँ "।।

कवि:- बोल कैसा तु दरिन्दा है,
          क्या दिखता नही, वह परिंदा है?
          छीनी कैसे तुने जिंदगी उसकी,
          क्या दिखता नही तुझे, वह जिंदा हैंं??

         अरे ओ क्रूर मानुष, कर दे आजाद उन्हे,
         वो खुद ही मधुरता अपनी झलकाऐगे।
         तोड दे पिंजर-वन ये अपना,
         वरना वे, पिंजर ले उड जाऐंगे।। #imagism 
#rawind