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यह मेरी ताकत यह मेरी आदत बन गई है नित रोज में न

 यह मेरी ताकत 
यह मेरी आदत बन गई है
 नित रोज में नया बनता
 नित रोज में कुछ नया अपनाता
 रोज मुझ में कुछ नया परिवर्तन कर
 मैं लाखों लोगों के हाथों में सजता
 धीरे-धीरे लोग मुझ में खोते
 और अपनों से दूर होते 
सारे रिश्ते मैंने मिटाए 
सारे रिश्ते मैंने बनाए 
पूरे दुनिया को दोस्त बनाया
 पर सारे संसार में अकेला भी किया 
लोगों का मिलना जुलना खत्म कर 
इंसान को अकेला किया 
जब मैं हूं तो कोई और क्यूं 
हर जगह बस 
मैं ही मैं हूं, मैं ही मैं हूं 
इंसान का दिल दिमाग मेरे बस में
  मेरे खातिर यह माता-पिता से लड़ता 
मेरे खातिर जान भी है देता
 हां मैं लाचार हूं बेबस हूं
 मैं कुछ कह नहीं सकता 
पर मैं वह दिमक हूं
 जो कभी भी पीछा ना छोडूं
 जब तक दिमाग का
 चुरा चुरा ना कर दूं

©Manju Sharma 'kanti'
  मोबाइल-2

मोबाइल-2 #कविता

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