राजनीति के इस चक्कर नें गाँव की हालत गारत की, इसीलिए दुर्गति होती हरदिन मेरे गाँव की ऊँच-नींच और भेद-भाव के इसमें अनगित किस्से हैं, राजनीति और छल छन्दों के इसी पृष्ठ के हिस्से हैं होते अनुचित कार्य सभी मनमानी से, कह कर करते पूर्ण सदा अभिमानी से व्याकुल हो उठता हूँ मैं सुनता हूँ इठलाती भाषा, होगा गाँव स्वच्छ एक दिन रहती अपुर्ण सबकी आशा गांव कूटनीति के छल छन्दों से छला गया, वर्षों से ठगने को बैठे उन्ही ठगों से ठगा गया जो मन आये बो करते है डर न कानूनी पहलू का , पहरा देते हर खाते पर जैसे शाखों पर उल्लू का उत्सुकता बढ़ती बच्चे की चलने को पैदल पैदल, गिरता उठता सन जाता है सड़कों पर काफी दलदल इस अस्वछता कि नीति पर गांव बाले खूब लड़े, देख रहे सरपंच तमाशा बीच सड़क पर खड़े खड़े अमित वर्मा