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मरे सारे अरमानों का शोक क्या मनाना, जख़्म देने वाले

मरे सारे अरमानों का शोक क्या मनाना,
जख़्म देने वाले तू खुल कर मुस्कुराना..!

बदला लेना नहीं है बदलाव में विश्वास करना है मुझे,
तू बेशक ईमानदारी से दुश्मनी निभाना..!

मर गया हूँ मैं भी तेरा ये रूप देख कर,
नहीं अब अपना किसी के भी संग जी बहलाना..!

तू इश्क़ था कभी मेरा भूल चूका हूँ मैं,
मैं इश्क़ हूँ तेरा न कभी मुझे अब कहलाना..!

अपने अंतर्मन से भी बिछड़ गया हूँ मैं अब तो क्या,
अब तेरा जिससे भी मन करे उससे दिल लगाना..!

दुःख में देख मुझे खुश है तू तो,
अच्छा होगा मेरा भी जल्दी ही मर जाना..!

उठाएगी दुनियाँ कंधे पे फिर ऐसे,
नहीं चाहेगा कोई फिर नीचे गिराना..!

ज़िंदा को गिरा कर मुर्दे को उठाते हैं,
बड़ा ही अजब दृश्य दिखाता है ज़माना..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #Crescent #armanokashok