बैठे बैठे कोई ख़याल आया ज़िन्दा रहने का फिर सवाल आया कौन दरयाओं का हिसाब रखे नेकियां , नेकियों में डाल आया ज़िन्दगी किस तरह गुज़ारते हैं ज़िन्दगी भर न यह कमाल आया झूठ बोला है कोई आईना वरना पत्थर में कैसे बाल आया वह जो दो राज़ ज़मीं थी मेरे नाम आसमां की तरफ़ उछाल आया क्यों ये सैलाब सा है आखों में मुस्कराए थे हम, ख़याल आया -mohit. khayal Aaya😊