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ख्वाइशों का एक मंजर ऐसा रहा, मैं ढूँढती रही सुकूँ

ख्वाइशों का एक मंजर ऐसा रहा, 
मैं ढूँढती रही सुकूँ हर तरफ़ मगर कभी गवारा ना हुआ•••

अब कुछ ज्यादा ख्वाइश नही है इस दिल की, 
बस इंतेज़ार है उस एक पल का, 
जिसमें मेरे रूह को सुकूँ मेरे अपनों के अपनेपन से हो•••

©Voice of Dreamer Nishi Mamta
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