रेत और बारिश *किस क़दर है मुझे तुमसे प्यार; तुम्हे पता नहीं, तड़प कर करता हूँ कैसे तुम्हारा इन्तज़ार; तुम्हे पता नहीं, करता हूँ मैं जो ख़ुदा से; हर वो गुज़ारिश हो तुम, मैं तपता रेत हूँ और सावन की बारिश हो तुम। . पहली ही नज़र से तुमसे; मोहब्बत मैंने की, बेशक़ दर्द मिला पर न अफ़सोस- न कोई शिक़ायत मैंने की, दर्द से भी प्यार हो जाए; दर्द की ऐसी आराईश हो तुम, मैं तपता रेत हूँ और सावन की बारिश हो तुम। . जो देखूँ चाँद-सितारों को; तो उनमे भी चेहरा तुम्हारा रहता है, और नींद आए जो कभी; तो ख़्वाबों में पहरा तुम्हारा रहता है, लगता है जैसे रातों की; कोई साजिश हो तुम, मैं तपता रेत हूँ और सावन की बारिश हो तुम। . नसीब में नहीं हो फिर भी; तुम्हे चाहता रहूँगा मैं, तुम्हारे लिए मैं कुछ नहीं पर अपना सब कुछ; तुम्हे मानता रहूँगा मैं, ये सोच कर की मेरे इश्क़ की; आज़माईश हो तुम, मैं तपता रेत हूँ और सावन की बारिश हो तुम। . रहम एकतरफ़े आशिक़ों पर; ये किस्मत करती कहाँ है, आख़िर रेत में बूंदें; कभी ठहरती कहाँ हैं, न होगी पूरी कभी जो; मेरी वो ख्वाईश हो तुम, मैं तपता रेत हूँ और सावन की बारिश हो तुम..... #ret_aur_baarish