इश्क़ वाे मत बतलाआे जाे लैला मजनू जैसा था। इश्क़ वाे भी न समझाआे जाे शाहजांह मुमताज थे वैसा था में उस इश्क़ अशिक हुं जाे मर्यादा पुरुषोत्तम के जैसा था। एक वचन के ख़ातिर जिसने महलाें काे त्याग दिया। बहन प्रेम में पड़कर जिसने लंका सर्वनाश किया। आैरत की लाज बचाने काे जाे स्वयं धरती पर आया ऐसा निश्छल प्रेम काे मैने भारत की धरती पर पाया है। प्रेम