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#OpenPoetry जज़्बात और जुनून की मिली-जुली कश्ती मे

#OpenPoetry जज़्बात और जुनून की मिली-जुली कश्ती में
कब सपनो का शहर पीछे छूटा पता ही नहीं चला!
तुम आऐ थे मिलने दो पल के लिए ही सही
तह-ए-दिल में कब से बैठ गए पता ही नहीं चला!
अब ख्वाहिश के पीछे भागूं की तेरे करीब बैठूं
फटाफट दौड़ती जिन्दगी में कुछ पता ही नहीं चला!
कुछ कसीदे लिखे तुम पर कुछ शेर भी कहे 
 सिर्फ तेरे लिए ही क्यूं लिखता रहा पता ही नहीं चला!
 दुनियां के रंज-ओ-गम से दूर जाकर मैनें जब सोचा
 कमबख्त इसी को मोहब्बत कहते हैं अब पता चला!

©Saurabh jha
  #OpenPoetry