मेरा मानना है कि मनुष्य का ईष्ट उसकी मानसिक दुविधाओं अथवा आवश्यकताओं का फल है। परन्तु ईष्ट ही भगवान है यह अनिवार्य नहीं। उदारण:- एक बालक की प्राकृति को जानने की जिज्ञासा बचपन मे माता पिता, उसके उपरांत पाठशाला के अध्यापक, उसके उपरांत कोई सन्यासी एवं ज्ञानी कुछ हद तक कम कर सकता है पंरन्तु वास्तव में वो सब भी उस ज्ञान से वंचित हैं। अतः स्वाध्याय ही शिवः तत्व की प्राप्ति है।