इक चुप्पी भरे आंगन में जैसे किसी बच्चे के आखेट की तरह, याद है मुझे वो अब भी मेरे टूटे हुए पाजेब की तरह। वो खनखनाहट भी बरकरार था जब तलक मासुमियत भरा प्यार था, समझदार क्या हुए ज़माने के लिए ये इश्क़ बन बैठा कुसूरवार था। बिखर गये घंघरू भी सारे धागे का जब सहारा छूटा, कुछ साजिश थी अपनो की कुछ नसीब भी था इनका खोटा। दूर तपते हुए रेत में जैसे मृगतृष्णा के फरेब की तरह याद है मुझे वो अब भी मेरे टूटे हुए पाजेब की तरह। मेरे टूटे पाजेब......