फागुन की एक हँसमुख सुबह नदी तट से नहा कर लौटती ये सुवासित भीगी हवाएं सदापावन , माँ सरीखी सोते देखकर मुझे जगाती ये गीली शीतोष्ण हवाएँ सिरहाने रख एक अंजलि फूल गुरियाल के नर्म उँगलियों से गाल को छूकर निकलती बिखरे बालों वाली शीतोष्ण हवाएँ ©संजय नौटियाल savere svere #hawayein