ठहर जा मंज़िल, ज़रा और ठहर जा तू, उनके बिना, तेरा मिलना बेमानी सा है। देर अक़्सर हो जाती है उनको आने में, मगर उनके बिना, बढ़ना गँवानी सा है। फ़ुर्सत उन्हें नहीं है, मगर मुझे तो है ना, उनके बिना, साथ जाना गुमानी सा है। ठहर जा री मंज़िल........। 🎀 Challenge-229 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 50 शब्दों में अपनी रचना लिखिए।