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मैंने खुद को समंदर सा बना लिया है। चुप रहकर अपनी

मैंने खुद को समंदर सा बना लिया है। 
चुप रहकर अपनी मौज मे बहते जाना है। 
मैंने नदियो सा खुद को बना लिया है। 
बहते हुए समंदर की गहराई मे उतर जाना है।  
मैंने फिर मिट्टी का आशियाना बनाना शुरु कर दिया है। 
ज़मीन पर जुड़कर खुद की औकात मे जो रहना है। 
माना मे पूरी नहीं हूँ दुनिया की नजर मे, 
पर मैं झूठी नहीं हूँ बस खुद की नजर मे, 
ऐब मिल जाएंगे साधारण इंसान जो हूँ, 
पर गर्व है खुद पर फरेब से कोसो दूर हूँ। 
बदलना किसी हाल मे मंजूर नहीं मुझे, 
जिन रिश्तों को एक बार दिल से बना लेती हूँ। 
शायद समझ कहो या ना समझी मेरी, 
पर अपने रिश्तो को ही बस तक़दीर बना लेती हूँ। 
कितना भी गम हो, मुस्कुराते हुए उठना है, 
फिर नयी सुबह के लिए ईश्वर को शुक्राना जो करना है। 
खुद की आदतों मे खुद ही उलझ जाती हूँ, 
पर यकीन मानो सब सह कर भी शिकायत नहीं कर पाती हूँ। 
क्यूकी अपना जीवन ईश्वर की देंन   मानती हूँ, 
आसमान मे उड़ कर भी ज़मीन मे ही रहना चाहती हूँ। 
अपने घरौंदे मे ही अपना सुकून जो पाना चाहती हूँ। 
बीते कल के चक्कर मे आज नहीं बिगाड़ना मुझे, 
अपने आप को कुछ ऐसे ही समझाती हूँ। 
मैं खुद के लिए बस खुद को ही आजमाती हूँ, 
कुछ पाने की चाह मे खुद को नहीं खोना चाहती हूँ। 
दर्द को सीने मे छुपा बेखूबी मुस्कुराना जानती हूँ 
लेकिन दुनिया के आगे कभी हार नहीं मानती हूँ। 
 कुछ पाने की चाह मे बहुत कुछ मे नहीं खो सकती हूँ, 
क्यूकी मुझे अपनों के बदले सफल होना नहीं आता है, 
शायद इसीलिए सब कहते है तुम्हें कुछ नहीं आता.... 


पर मैं ख़ुश हूँ इसमें की मुझे कुछ नहीं आता..
क्यूकी मुझे बस मेरा यही व्यक्तित्व है भाता.... 

मीनाक्षी भारद्वाज #"मृणालिनी " # mouj #fakiri
मैंने खुद को समंदर सा बना लिया है। 
चुप रहकर अपनी मौज मे बहते जाना है। 
मैंने नदियो सा खुद को बना लिया है। 
बहते हुए समंदर की गहराई मे उतर जाना है।  
मैंने फिर मिट्टी का आशियाना बनाना शुरु कर दिया है। 
ज़मीन पर जुड़कर खुद की औकात मे जो रहना है। 
माना मे पूरी नहीं हूँ दुनिया की नजर मे, 
पर मैं झूठी नहीं हूँ बस खुद की नजर मे, 
ऐब मिल जाएंगे साधारण इंसान जो हूँ, 
पर गर्व है खुद पर फरेब से कोसो दूर हूँ। 
बदलना किसी हाल मे मंजूर नहीं मुझे, 
जिन रिश्तों को एक बार दिल से बना लेती हूँ। 
शायद समझ कहो या ना समझी मेरी, 
पर अपने रिश्तो को ही बस तक़दीर बना लेती हूँ। 
कितना भी गम हो, मुस्कुराते हुए उठना है, 
फिर नयी सुबह के लिए ईश्वर को शुक्राना जो करना है। 
खुद की आदतों मे खुद ही उलझ जाती हूँ, 
पर यकीन मानो सब सह कर भी शिकायत नहीं कर पाती हूँ। 
क्यूकी अपना जीवन ईश्वर की देंन   मानती हूँ, 
आसमान मे उड़ कर भी ज़मीन मे ही रहना चाहती हूँ। 
अपने घरौंदे मे ही अपना सुकून जो पाना चाहती हूँ। 
बीते कल के चक्कर मे आज नहीं बिगाड़ना मुझे, 
अपने आप को कुछ ऐसे ही समझाती हूँ। 
मैं खुद के लिए बस खुद को ही आजमाती हूँ, 
कुछ पाने की चाह मे खुद को नहीं खोना चाहती हूँ। 
दर्द को सीने मे छुपा बेखूबी मुस्कुराना जानती हूँ 
लेकिन दुनिया के आगे कभी हार नहीं मानती हूँ। 
 कुछ पाने की चाह मे बहुत कुछ मे नहीं खो सकती हूँ, 
क्यूकी मुझे अपनों के बदले सफल होना नहीं आता है, 
शायद इसीलिए सब कहते है तुम्हें कुछ नहीं आता.... 


पर मैं ख़ुश हूँ इसमें की मुझे कुछ नहीं आता..
क्यूकी मुझे बस मेरा यही व्यक्तित्व है भाता.... 

मीनाक्षी भारद्वाज #"मृणालिनी " # mouj #fakiri