क्या तुम्हें याद है वो रात साथ चलते हुए भी इक कमी सी थी जर्रे जर्रे में दर्द ठहरा था पत्ते पत्ते की आंख नम सी थी क्या तुम्हें याद...... जिसमें खामोशी की नुमाइश थी लफ्ज बेजान थे आंखों की आजमाइश थी क्या तुम्हें याद....... चादं भी ऊतरा था नवाजिश में चांदनी लेकर ठिठका रहा देर तक सूखे दरख्तों पर क्या तुम्हें याद ....... जिसपर अब भी यादों के पहरे हैं बेरंग से ख्वाब सजाये थे अब सुनहरे हैं क्या तुम्हें याद है वो रात प्रीति #ek raat# ahssas #yaad #challange#doyouremember #chall. Initiated by: Rohan Srivastava thanks for nomination.