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ये शाम जल्द ढल जाये सुबह में, दिल बड़ा बेचैन हो रह

ये शाम जल्द ढल जाये सुबह में,  दिल बड़ा बेचैन हो रहा है।
 नींद रूठ गयी है हमसे, नजाने किस से उसका हुस्न-ए-करार हो रहा है।
उन्हें लगता है की हमें हमारी ख्वाइशों ने डुबा दिया, 
पर बची अब ख्वाइशें ही तो हैं जिनसे पल दो पल का  इकरार हो रहा है।।

सुबह जो हो तो पूछूँगा उससे, कैसी ये मोहब्बत उसकी रात से।
न साथ हैं फिर भी साथ हैं, दूरियों में उनके अलग ही बात है।
हम इंसानों की मोहब्बत में तो दूर होते ही साथ छूट जाते हैं,
 दो पल में सारे कस्मे वादे टूट जाते हैं।
लम्हें जो कभी बिताये साथ थे, उन्हें यूँ उछाला जाता है की सब कुछ इतर बितर हो जाये।
यादें जलती माचिसों से ऐसे सुलघाय जाते हैं की जो बचे वो राख हो जाये।
लालछन लगाने का आलम फिर कुछ यूँ होता है-
वो बार बार तोड़ इस दिल को कहती हैं तुम्हे क्या दर्द होगा, तुम्हारा दिल तो पत्थर का है।
हम बस मुस्कुरा के सोचते हैं; मोम के इस दिल को जमा पत्थर बना दिया अब इसपे हक़ भी तो उन्ही का है।
मोहब्बत हमारी थी तो तकलीफ भी हमारी होगी, उन्हें क्या परेशान करें।
नफरत तो कभी न होगी उनसे, बेहतरी इसीमे है की अब खुद से जरा सा प्यार करें।
जिन्हें जाना था वो चले गए, अब तो आने के सारे दरवाज़े भी बन्द हैं।
हम बैठे मयखाने में साक़ी के साथ, थे अकेले कल और आज अकेले भी हम हैं।।
©अंकित कुमार ye sham jra dhal jaye.
ये शाम जल्द ढल जाये सुबह में,  दिल बड़ा बेचैन हो रहा है।
 नींद रूठ गयी है हमसे, नजाने किस से उसका हुस्न-ए-करार हो रहा है।
उन्हें लगता है की हमें हमारी ख्वाइशों ने डुबा दिया, 
पर बची अब ख्वाइशें ही तो हैं जिनसे पल दो पल का  इकरार हो रहा है।।

सुबह जो हो तो पूछूँगा उससे, कैसी ये मोहब्बत उसकी रात से।
न साथ हैं फिर भी साथ हैं, दूरियों में उनके अलग ही बात है।
हम इंसानों की मोहब्बत में तो दूर होते ही साथ छूट जाते हैं,
 दो पल में सारे कस्मे वादे टूट जाते हैं।
लम्हें जो कभी बिताये साथ थे, उन्हें यूँ उछाला जाता है की सब कुछ इतर बितर हो जाये।
यादें जलती माचिसों से ऐसे सुलघाय जाते हैं की जो बचे वो राख हो जाये।
लालछन लगाने का आलम फिर कुछ यूँ होता है-
वो बार बार तोड़ इस दिल को कहती हैं तुम्हे क्या दर्द होगा, तुम्हारा दिल तो पत्थर का है।
हम बस मुस्कुरा के सोचते हैं; मोम के इस दिल को जमा पत्थर बना दिया अब इसपे हक़ भी तो उन्ही का है।
मोहब्बत हमारी थी तो तकलीफ भी हमारी होगी, उन्हें क्या परेशान करें।
नफरत तो कभी न होगी उनसे, बेहतरी इसीमे है की अब खुद से जरा सा प्यार करें।
जिन्हें जाना था वो चले गए, अब तो आने के सारे दरवाज़े भी बन्द हैं।
हम बैठे मयखाने में साक़ी के साथ, थे अकेले कल और आज अकेले भी हम हैं।।
©अंकित कुमार ye sham jra dhal jaye.
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Ankit Kumar

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