डियर डायरी ख़्वाबों का शहर डियर डायरी... तुम अब तक कहीं कोने में पड़ी हुई थी उस लकड़ी की अलमारी में जिसमें अब लगभग दीमक लग चुकी है...कई सालों बाद पहली दफ़ा तुम्हें जब मैंने देखा तो ऐसा लगा कि मुझे कोई ख़जाना मिल गया हो। तुम्हारे ऊपर लगी धूल को झाड़ने के बाद मैंने उसमें सीलन की खुशबू को महसूस किया। वह अक्षर जो सालों पहले लिखे गए थे उनकी स्याही अब फैल चुकी है,हाँ मगर वह अब भी पढ़ने में बराबर आ रहे हैं। तुम्हें तो पता है डियर डायरी कि मैं चली गई थी अपने ख़्वाबों के शहर, जहाँ से मेरे कभी वापस आने की उम्मीद नहीं थी ,मगर सिर्फ एक तुम वजह थी मेरे वापस आने की।