इक दिन संवेदना की जमीन से, प्रेम को उखाड़ा मैने, और टाँग दिया, मोहब्बत की कच्ची दीवार पर, विश्वास की तिरछी लगी एक खूँटी के सहारे, क्या पता था...प्रेम भी तिरछा ही टँग जायेगा, उस मौन तस्वीर की भाँति, जो चेहरे की मुस्कान तो साथ लिए है अरसे से, पर...कुछ कहती नहीं, बस...अविश्वास की आँधियों में, डोलती है इधर से उधर, एक स्थिर सहारे की तलाश लिए, और...आँधियों के थमने पर यथावत हो जाती है, उन आँधियों के फिर लौटने के इंतजार में, कि ..कब, कोई हवा का ऐसा झोंका चले, और....स्वतंत्रता की फर्श पर गिरकर, उसे आजीवन इस...अस्तित्व से मुक्ति मिलें..।। प्रेम सदा ही संवेदना की जमी पर ही उगता है.. कहने का आशय यह है कि..कोई स्त्री जब अपने बाबुल के यहाँ जन्म लेती है तो वह जगह उसकी संवेदना की भूमि होती है.. जहाँ उसे सभी प्रकार के सुख मिलते हैं...परंतु जब उसका साथ किसी ऐसे के साथ बाँध दिया जाता है.. जिसे वह जानती नहीं तो जीवन उसका उस विश्वास की खूँटी की तरह हो जाता है जो उसे सहारा तो देता है पर यदि आपसी मतभेद हो विश्वास की कमी हो तो वो स्थिरता नही दे पाता..और वह खूँटी उसके लिए तिरछी सी लगती है.. जिससे वह सदा ही चाहती है कि कोई ऐसी हवा चले ..जो उसे उस फर्श पर गिराकर स्वतंत्र कर दे ..सभी बेड़ियों से..क्योंकि अक्सर काँच फर्श पर गिरकर टूट जाता है..तस्वीर भी यही चाहती है..शायद ऐसे रिश्ते भी काँच के जैसे ही बन जाते हैं जो जरा सी ठोकर पर टूटते हैं और स्वतंत्र हो जाते हैं अपने अस्तित्व से... सभी आदरणीय..लोगों का हृदय से सादर धन्यवाद याद करने के लिए🙏 कान्हा जी सबको खुश रखें,🙏 Best YQ Hindi Quotes YourQuote Didi