गुर सुखदाता गुर करतार।। जी प्राण नानक गुर आधार।। अर्थ:- नाम ध्याने की विधि यानी गुर ही हमारे लिये सुखों का दाता है।। गुर ही परमात्मा है।। हे नानक मनुष्य के जहाँ से प्राण आ रहे हैं वहां हमने सन्तो द्वारा दी गयी विधि को लगाना है यानी गुर को उपयोग में लाना है।। गुरबाणी फ़रमान करती है:- नेत्र तुंग के चरण तर स्तद्रव तीर तरंग।। अर्थ:-अपने नेत्रों को तीर के जैसे, जहां से प्राण आ रहे वहां पर टिका लो।। {(तुंग गांव हरिमंदिर साहिब का पुराना नाम है ) हमारा शरीर भी हरिमंदिर है:- हरमन्दर एह शरीर है।।} फिर उन नेत्रो को प्रकाश में जो के हमारे साहमने खाली स्पेस है उसमें टिका लो (यह हुए चरण प्रभु के) तोह आपको वह सच्चा द्रव यानी अमृत प्रकाश प्रभु दिखेगें तरंगो की फोम में , तर यानी तैरती हुई लहरें।। गुरु जी फ़रमान करते हैं:- ,"जह झिलमिलकार दिसन्ता।।" यानी पहले नेत्रों को तीर की फोम में नाक के उस भाग पे फोकस करना है जहाँ से स्वास आ रहे हैं।। फिर नेत्रो की दृष्टि को साहमने फोकस करना है खाली स्पेस में फिर पलकों को ऊपर उठा देना है खाली स्पेस में ध्यान फोकस करना है।।फिर ध्यान साहमने फिर नाक पर फोकस करना जहां से स्वास आ रहा।। फिर नेत्रो को नीचे जहां भी बैठे हैं जमीन पर जा बिस्तर पर जो भी जमीन है नीचे फोकस करना खाली स्पेस में फिर नाक पर फोकस करना फिर नीचे उसके बाद फिर साहमने खाली स्पेस में फिर पलके ऊपर उठा देनी और खाली स्पेस में देखना फिर साहमने फिर नीचे फिर नाक पर खुद को देखना है।। यह है विधि-गुर।।प्रकाश को ध्याने की।। ©Biikrmjet Sing #गुर