जैसा की इसमे कहा गया की मनुष्य को पापी से घृणा करने के बजाय पाप से करना चाहिए, क्योंकि पापी एक मनुष्य हो सकता है, परंतु पाप हर मनुष्य मे है। और मनुष्य का प्रयास इस पर रहना चाहिए की कोई व्यक्ति पाप न करे,अगर उसे नष्ट ही करना है तो, उसके भीतर पाप को नष्ट करे। अगर मनुष्य के भीतर का पाप नष्ट हो जायेगा तो पापी भी स्वयम नष्ट हो जायेगा, परंतु मनुष्य हमेशा से सरल रास्तों का चयन करता आया है। इसलिए वह हमेशा बाहर दृश्य पापी को देखता है और उसके भीतर बैठे पाप की जगह पापी को नष्ट करने की चेष्टा करता है।
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