देखो- देखो क्या ज़माना आ गया , जिंदगी में शौक और खुशियो को बढ़ाने, झोपड़ी को छोड़ महलों में आ गया | देख कर खिलौना महलों में झोपड़ी का, मन व्यथित तो हुआ मगर , झोपड़ी की कीमत का पता महल में आ गया | झोपड़ी की कीमत का पता महल में आ गया |