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माना कि गुज़र रही है ज़िंदगी फटेहाल में, मैं अपनी रस

माना कि गुज़र रही है ज़िंदगी
फटेहाल में,
मैं अपनी रस्में 
फिर भी निभा रहा हूं,
जेब में तो बमुश्किल चंद सिक्के हैं
मैं उसके लिए
फूल लेकर जा रहा हूं,
के सफ़ेद हो गए हैं
बाल मेरे,
झुर्रियां उसके चेहरे पे भी छाई है
मेरे हाथों में फूल देखकर
मेरी जान आज अरसों बाद
मुस्कुराई है।

©शायर-गुमनाम।
  #मैं और मेरे एहसास।

#मैं और मेरे एहसास। #शायरी

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