मैं कहां तक अपने ग़म का ग़म करूं ज़िंदगी कब तक तेरा मातम करूं आरज़ूओ की तपिश बढ़ने लगी आंच इन शोलों की अब मध्यम करूं ज़िन्दगी का रुख़ बदलना है मुझे ज़िक्र बीती ज़िंदगी का कम करूं जब नही "मुस्कान"उसे मेरा ख़्याल मैं ही उसको याद क्यूं हरदम करूं musksn sharma ©मुस्कान शर्मा #Flower mera faisla