❤️ तृतीय रचना :- पिता (कविता अनुप्रास अलंकार) ❤️ पावन, प्रखर प्रेम निखर आता, पिता प्रीत से अंक जब भरता सिखाता सीख सत्य की, वो जीवन जीने की रीत मन में भरता अंगुली उनकी अगन लगा बैठी, मंज़िल को राहों से मिला बैठी कानन कठिन जीवन पथ का, पिता प्रदर्शक बन संग है चलता ह्रदय हर्षित, प्रेम अपार, मुख मंडल फिर भी सामान्य रहता कठिन कांटों से भरी राहों में, पथ प्रदर्शक जीवन धन्य करता भावो को ह्रदय भाग बनाकर, मुख मोहक मुस्कान सजाकर कौन, किसे क्या देता? मेहनत, मोह, तयाग वो खुशी भर देता कांटे चुनना या फूल, तुम अपने कोमल कलेवर को बचाकर रक्त रंजीत धरा ना हो भान रहें , कर्म कर "सत्य" तू जानकर भीरु भय से भाग कर तुम, लज्जित मातृ-भूमि को ना करना भाग जाए जो जीवन पथ से, कायर बन कभी मौत ना मरना #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #जन्मदिनकोराकाग़ज़ #kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता #kkजन्मदिन #kkजन्मदिन_3 #kkhbd2022