ग़ज़ल ख़यालों में तेरी जगा रात भर, जरा आँख झपकी सहर हो गई। नज़र जो खुली तो तुम्हें ढूंढती, न जाने नज़र से किधर हो गई। सभी से छुपाया नज़र को मगर, जमाने को कैसे ख़बर हो गई। मुहब्बत हुई जो मुझे आजकल, नज़र भी नज़र की नज़र हो गई। तुम्हें खोजती है तुम्हें चाहती है, प्रियम की नज़र बेख़बर हो गई। ©पंकज प्रियम 22 सितम्बर 2019 नज़र