राजीव सचान का आलेख समानता के सिद्धांत की धज्जियां आंखें खोलने वाला है भारत की विडंबना ही है कि पंथनिरपेक्षता के छल के नाम पर इमामो को सरकारी भत्ता दिया जाना भी इतने वर्षों से स्वीकार्य है दूसरी तरफ मंदिरों में आने वाले करोड़ों रूपए का चढ़ावा लेकर पुजारियों को मात्र न्यूनतम राशि देने वाले कुछ दक्षिण भारतीय राज्य यह दलील देते हैं कि अगर मंदिर सरकारी नियंत्रण से मुक्त हो गया तो हजारों पुजारी की देखभाल कौन करेगा बहुत से मामलों में यह तो भी पाया गया है कि मंदिरों के धन को दूसरे तथा पंत महाजनों के कामों के लिए सड़कों के निर्माण आदि के लिए बिना किसी अनुमति के प्रयोग किया जा रहा है ज्यादा समय नहीं बीता है जब महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी भूमि विक्रय का प्रकरण सामने आया था ©Ek villain #ravishkumar समानता का सिद्धांत हो सुनिश्चित मंदिरों के पैसों से ना हो कार्य