वर्षा और बरबस, कुछ आँसू कांच से ढले, कुछ को देखा तो गाल से, कुछ कुछ सिर के बाल से, बहुत से पेड़ों की छाल से, ऐसी वर्षा की बरबस, सड़क पर भी और सड़क के किनारों पर भी, बेबस होकर बहता नीर, दीवारों पर भी और दीवारों के कोनों पर भी, बेबस बहता नीर, ऐसी वर्षा की बरबस, टूटी गाड़ियाँ पड़ी थीं उनके जंगी हिस्सों पर भी, ठहर ठहर कर बहता पानी, लगता है कोई विवाह है यहाँ और बेटी ससुराल जा रही, ऐसी वर्षा की बरबस, हवा के किसी झौंके से बाड़ पर कोई कपड़ा अटक गया था उसके नीचे से गिरती बूँदें, भूखे पशु के अक्षुओं से बहते पानी जैसा ही लगता, ऐसी वर्षा की बरबस, खंडहर पड़े भवन में, छत के छलनी होने से, जगहों जगहों से बरस पड़ी बेबसी, ऐसी वर्षा की बरबस, एक भी फ़कीर भी दिखा, जिसका कोई अपना नहीं लग रहा था दुनिया में, उसका भीगा झोला और वो दर्द जो बारिश के जरिये झोले से बरस रहा था, ऐसी वर्षा की बरबस। Khetdan Charan Bamer Rajsthan #quotes #poem #stories #shayari #erotica #love #hindi