अपनी ही धुन का वो बाशिंदा है, लाख ठोकरें सही ,पर खुद में जिंदा है . ग़ज़ल जब पुरानी बज उठती है फिर वही शाम दूर कहीं ढ़लती है .. #यूंहीबेख्यालीमें रंज और दर्द की बस्ती का मैं बाशिंदा हूँ ये तो बस मैं हूँ के इस हाल में भी ज़िन्दा हूँ(गजल)से प्रेरित #जगजीतसिंह