अब तो बधाई देने वाले भी कमते जा रहे हैं, जीने के जरिए भी थमते जा रहे हैं। यूं अकेले बैठे एक अंधेरे कमरे में, देखू क्या गलती दिखी इन्हे हमरे में। #०१