वो महलों की रानी है, वो कैलाश पर पीता गांजा है, देवी को फिर उस फकीर में सोचो ऐसा क्या भाता है, वो है विशाल, वो है त्रिकाल, वो विध्वंशक कहलाता है, और सागर मंथन होने पर, खुद सारा विश पी जाता है, दक्ष ने किया उनका अपमान, फिर वो खड़ा मुस्कुराता है, महल है जिनके चरणों में, वो पहाड़ों पर चढ जाता है, वो योग गुरु, वो है ध्यान, वो ही ज्ञान कहलाता है, पर खोले जब त्रिनेत्र ध्यान तो सब भस्म कर जाता है, कभी ध्यान में खोया हुआ कभी तांडव करता जाता है, वो समसान में जाकर के, चिता से राख़ लगता है, वो सन्यासी है ज्ञान स्रोत, वो गृह आश्रम चलाता है, पंचिंद्रियो पर विजय प्राप्त, वो शंभूनाथ कहलाता है। वो महलों की रानी है, वो कैलाश पर पीता गांजा है, देवी को फिर उस फकीर में सोचो ऐसा क्या भाता है, वो है विशाल, वो है त्रिकाल, वो विध्वंशक कहलाता है, और सागर मंथन होने पर, खुद सारा विश पी जाता है, दक्ष ने किया उनका अपमान, फिर वो खड़ा मुस्कुराता है, महल है जिनके चरणों में, वो पहाड़ों पर चढ जाता है, वो योग गुरु, वो है ध्यान, वो ही ज्ञान कहलाता है,