बचपन का कैसा रंग था, यारों का कैसा संग था, रहते थे अपनी धुन में, न किसी बात का गम था, सोचों तो कितना कम था, उस समय में कितना दम था, स्कूल टीचर की डांट का, न डर था किसी बात का, कपड़ों का न कोई फ़ैशन, बलों का था बस इम्प्रेशन, वो खेल रात और दिन के, मस्ती का आलम हरदम था, सोचों तो कितना कम था, उस समय में कितना दम था, यारों संग होती होली, और होती यारों संग दिवाली, मिलकर हम करते थे, अपनी रात निराली, बचपन का ऐसा रंग था, यारों का ऐसा संग था, सोचों तो कितना कम था, उस समय में कितना दम था.... ©Deepak Chaurasia #बचपन का कैसा रंग था, यारों का कैसा संग था, रहते थे अपनी धुन में, न किसी बात का गम था, सोचों तो कितना कम था, उस समय में कितना दम था, स्कूल टीचर की डांट का,