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भरे बाजार हमने खाबों की दीवार टुटते देखा है। कई बा

भरे बाजार हमने खाबों की दीवार टुटते देखा है।
कई बार ,बार बार बेवजह अपनों को रूठते देखा है।
खुशियों मै सभी साथ थे हमारे।
पर मुश्किल घड़ियों मै।
 एक एक हाथ छुटते देखा है।
बुरा दौर का नहीं लगता।
लगता है उस दौर मै अपनों की बुरी नियत।
जनाब हमने अपने दिवारों को भी।
वक्त पर पिछे हटते देखा है।
खाबों सा हमने अपनों को समेट रख्खा था।
थोड़ी-बहुत हालात क्या बिगड़े।
मुट्ठी 👊 की रेत सा एक एक को।
हमने फिसलते देखा है।।

©Pankaj Kumar
  देखा है
pankajkumar3694

Pankaj Kumar

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देखा है #कविता

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