कब तक दिखावे वाली जिंदगी जिओगे, कभी तो असल जिंदगी से वाकिफ़ होओ, खुले आसमाँ में पीपल के नीचे बैठो थोड़ी देर, कभी तो उन पत्तों की सरसराहट भरी बातें सुनों, कभी तो अपने घर की बोरवेल से दूर हेण्डपम्प से हाथ मिलाओ, अरे हाथ क्या,हम तो लुमट भी लेते हैं कभी कभी, अपने बचपन को याद करके, स्टील के लोटा गिलास को छोड़ कभी तो अपने दोनों हाथों को इकट्ठा कर पानी की मिठास का आनंद लो, सड़के क्या बन गयी है, वो तो ठीक है, पर अपनी गाड़ी को विराम देकर, अपने पैरों को थोड़ा कष्ट दो, थोड़ा बाहर टहलने तो निकलो, आसपास के एहसास को छुओ तो सही, कब तक दिखावे वाली ज़िन्दगी जीते रहोगें, कभी तो असल जिंदगी से वाक़िफ़ होओ.... ©अर्पिता #वाकिफ़